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[ ५१ ] जस भगति जादव जारिण, वरणराय रोम वखारिण। वपु वरण वीरज वारि, नह वर रामा नारि। करतार इंद्री क्रम, पळ में न दीह परंम । प्रभु तरणे हाड पहाड़ि जपि अगन मुहडौ जाड़ि। अति लाभ कहिये लोभ, सोय अहर साहवि सोम । महा तत्त चेत मंडारण, परमेस डील प्रमाण । पर मुख पाप पछारिण, बळि गयरण बांह वखांगि। करतार मेह करति, व्रम चिहुँ रसा वरसंति । परमेस पार अपार, वैराट घट विसथार ॥ ६४॥
॥ कवित्त ॥ वडी देह वैराट, घाट तोवह घरण नामी। हूँ पापी हेकलौ, सुजस नह जाणा सामी। भगत भलो नंद भाग भगत ग्वाळ्यिा भरपीजे । वडा भगत भगवान रा, राम रीछा सिर रीजै । भौल ही भगत थारै भला, कैये ना मौजां करें। हमां सत कूकि विरता हुये यैरै काजि अवतरै ।। ६५ ।। येरै काज अलेख, अनत फेरा अवतरिौ । भगतां कजि भूधरा, कव हैमर रौ करियो। हस अने वाराह, त्रिगुण अवतार तुहारा । तू ना दीठौ तिका, जिका जीता जमवारा । नव खंड दीप सिगळा अनड़, बह पांगी सांबोडिया। केई वार किसन कलिपत करि प्रयाग तणे वड़ि पौढिया ॥६६॥ प्रयाग तरणी वड़ि पौढियौ, पूरण ब्रह्म परमेस । आवी दाइ अतीत ना, सेझ कीयो ले सेस ॥६७॥ साहिव सूता सेससिरि, करम न दरसे कोइ । कान तणे मल सां किसिनि देत उपाया दोड ।। ६८ ॥