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समरि जीव अण जीव करम केई करम अकरमी। सुख दुख जग सामि धरम केई धरम अधरमी । निराकार साकार अनन्त बनह तु अवरन । सामि सरीखौ सुकवि तुहीज आप जिसौ तन । तु आप आप इनेक तवि प्रथिमि एक ससार पति । कूड नै साच करतार रा साधा सुरिणजो एह सति ।।१शा सत सील सन्तोष विले अति साच दयावत । खिमावत अखिलिना सवल मन मा थारा सत । विले इग्यारस बरत भगति ऊपरि प्रभ भीजै । पिप्पल तुलछी पान राम या परि रीज। गाइ नै डाभी गोपीचन्दरण निति थारा नन्द नन्दना। ब्राह्मण निपट वाला विले ए गरीब गोविंदना ॥१६॥ गोविदि रै कोइ ग्राम कना कोइ नाम कहिजे । सामि कुणे रो सामि राम के ऊपरि रीजै । आप आप सहि आप निको काइ नारि निको नर। पेट पूठि नही पाऊ काह काया वाहा कर । नइणि नै समग वेवइ निही कठे तात माता कठे। निगुण ना किरणही जायोनही उठे आप आतिमि अठ॥१०॥
उठे आप स्रव आप विसन वैकु ठि विराजै । तीन भुयण मा त्रिगुण निगुरण नागौ नह लाजै । सब भूत स्रव सास नाम ग्रामह स्रव नीरह । स्रव आप स्रव वाप स्रव आचार सरीरह । स्रव वेद भेद आतिम सदा किसन न हुतो कही कब । स्रव वीज खीज वलि रीज स्रव अवली सवलो आप सब ॥१८॥ सव लहै कुण सुकवि स्रव स्रव हुँता न्यारी । व्रमचारी गोविदि परम लिखमी ना प्यारौ ।