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[ ३६] जाइऔ सरब ससार जे विसन कहीजे सीलवत जम तरणो अंत कंत ज्यानखी अनंत नमो फेरा अनंत। अनत तरणो नहिं अत नाम लालच पिरिण नाही। रूप रेख निही रग कही हब का हिज काई। सास आस निहिवास वारिण नह खाण न वेदु । अनत नाम अकाज भ्रांति नह जाति न भेदूं। केई थोक निही नन पार कोइ सरब वात साची सिही। किमि करि प्रणाम कोजे सुकवि नरहर रे इतरी निही ॥५॥ निहो केम घणनाम हेक हैग्रीव विले हस । विले सेत वाराह आप विरिण रूप तपो अस.। मछ कोम नरसीघ वाह वामरण कहि वामण । रिष वदत पिथराव भरथ रुवनाथ सत्रघरण। पढि फरसराम लखमण कपिलि रिदै मुझ वलि राम रहि। नारीयण विषभ अवतार निजि क्रिसन बुधि निकलंक कहि ॥६॥
कहिर्ज कासु सुकवि धौड गुण नावै धाता। आप अगम जग ईस वेद नह जारण वाताँ। तत पाँच गुण तीन कोम डिगपाल कमाली। सोम राह छिनि सूर क्रेत विसपति कोलाली। सीत नै गौरि सावतरी तिलोइ न जाणे तुझनां। सकति री नही इतरी सकति मुरिखि कहिसी मुझनां ।। ७ ॥
मुझ तणी मतिमन्द चन्द अधिकौ चतुराई । अकल घरणी ईद मे किसन गम न लहै काई । उण दिनि जायौ अनन्त हरो तिणि दीह न हुँतौ । इम कोई न कहै अवर कहै नह मरतौ करती। हुँतौ जि आप केई जुग हुमा केई वार कलपंत हुआ। त्रेमुगण भाजि हुये एक तन हरी तुझ तोवह होआ॥८॥