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मानव एक ओर जीवन के पुराने मूल्यो से दूर होकर अपनी अध्यात्म भावना खो चुका है, दूसरी ओर जीवन के नये मूल्यो को पूर्णतया ग्रहण करने मे वह अपने को असमर्थ पाता है। इसी का परिणाम है कि उसके जीवन मे न सुख है और न शान्ति । आज जो चारों ओर ईर्ष्या-द्वेष, मार-काट, हिंसा और घृरणा दिखायी पड़ रही है उसका कारण मनुष्य का मनुष्य के प्रति अविश्वास और वैर-भाव ही है। पीरदान का काव्य यद्यपि सवा दो सौ वर्ष पहले लिखा गया था पर वह आज भी हमे अपने आध्यात्मिक प्रकाश से मार्ग दिखा रहा है। वह ज्योतिस्तम्भ की भांति हमे बताता है कि सामने चट्टान है, विनाश है, मृत्यु है । यदि हम वास्तविक सुख-शान्ति चाहते हैं तो हमे सारे ऊपरी और मिथ्या भेदभाव भुलाकर जीवन मे सामजस्य स्थापित करना होगा। कवि का यह सन्देश आज भी-नया है और उस दिन भी नया ही रहेगा जब मानव दूसरे ग्रहो मे पहुँच जायेगा।
चन्द्रदान चारण एम० ए०, साहित्य-रत्न
प्रिंसिपल, भारतीय विद्या-मन्दिर, बीकानेर