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________________ [ २६ ] चाव (१०३)-उत्साह, उत्कंठा। चोखै (११)~श्रेष्ठ उत्तम । चावियो (५३)-चवाया, चर्वन किया। चोरी (२१)-चुराने वाली (चित्त को) चाही (३२)-इच्छा करो, चाहते हैं। चोरै (५८-चोरियो, चोरिये, तस्कर चित्ति (२१)-चित्त मे। वृत्तिएँ। चिति नै ४९)- चित्त को। चौ (१५)-का। चिदारणद (४६)-चिदानद । चौक (३२)-प्रांगण। चिरिताळा (६६)-चरित्र करने वाला। चौकस (६०)-निश्चय ही, सतर्क । चीध (६२)--ध्वजा, झडा। चौद ४७)-चौदह । चीना (१६)--आहार कर गई। चौरी (११)-विवाह-मडप, विवाह चीणमण (३२) मंडप की वदा । चीणि (८६)चीतारि (३,-स्मरण कर, स्मरण च्यार (३६)-चार । च्यारि (४७)-चार। करके। चीतारै (६८) याद करते है। छडकाड (६१)-पानी आदि छिडकने चीर (५९)-वस्त्र। की क्रिया। चुहु-गमा (४०)—चारो ओर। | छत (२४ -मकान के ऊपर का भाग । चुनाळि (५३) छता (९७'-प्रकट। चूडली {११) हाथी दांत की बनी छती (१९)-है, होते हुए। चूडियां जो सघवासी अपनी | छती (३८, ८२, १०२)—मौजूद, भुजा पर धारण करती है। । वर्तमान, प्रसिद्ध, प्रकट । चूरिया (५६,-व्वस किए । छत्त (६२/-राजा, छत्रधारी। चूरी (३२)---ध्वस करिए। | छयाळ (९८;---छत्र धारिन, राजा। चूल (३१)-चूल्हा । | छत्रासुर (१०३)-एक असुर का नाम । चेड (४५}-खुले ग्राम । छळिया (१६, २१)-छल लिये, धोखा चेतियौ (६३)-सतर्क हुआ, सावधान दिया। हुआ। छलियो (९५)- छल, घोखा दिया। चेली (३२)---शिष्य । छकियो (१७)-छल लिया । चोखिन {१२)- चलेगी। छा (१००, ३४,-हूँ।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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