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________________ [ ५ ] अम्य (१०३)-हमारी। अळगौ (५२, ७०)- दूर, पृथक । अम्हा (१६) हमरे, मेरे । अलज (९८)-लज्जापहरण । अम्हाना (७)हमको। । अला (१०, १०३)-ईश्वर,अल्लाह। अम्हारा (६५)-मेरा, हमारा। | अलाह (३, ७, ७४, ९५, ६६)अम्हारै (७)-हमारे। ईश्वर, परमात्मा, सुदा । अयाण (६६, ७०)-अज्ञानी, अल्पज्ञ, । अलेख (७, ३४, ३६, ६६)-अलक्ष्य, अज्ञ। अपार । अयिरल (३४)-वारा-प्रवाह। अलोक (५०)-१ जो दिखाई न पडे, अरक (४३, ५२)-सूर्य, अर्क। २. वह स्थान जहां कोई अरजां (३१)-पुकार प्रार्थनाएं। आदमी न हो, ३. ऐसा जीव अरण (६१)-(स० अरण्य), जंगल, जो मरने के वाद अन्य किसी सन्यासियो का एक भेद । लोक मे न जाय, ४. मनुष्यो अरथ (३५, ३८)-अर्थ । का प्रभाव । अरदास (१५, ८७)-प्रार्थना, अर्ज- अल्ला (८६)-ईश्वर । दाश्त । | अवतार (३६, ४२)-विष्णु का संसार अरसु (२६)-ढीला पडना या करना मे शरीर धारण करना अथवा देरी लगना। पुराणानुसार किसी देव विशेष अरि (३६, ६२)-शत्रु। का मनुष्य शरीर धारण अरिजण (५, ३४, ४४, ६२, ६८, करना। ७१, ६७ )-अर्जुन। अवतरियो (६३)-अवतार लिया। अरिहंत (४)-वीतराग, जिन । अवदाळ (१७)-देखो-'अवदाळ' (३३)-ईश्वर, अरिघ्न, | अवर (३६)-अपर, अन्य । शत्रुविनाशक। अवरण (४९)-वर्ण या रग रहित । (४६) अर्हत् (भगवान जैन) अवरन (७, २७)—वह जिसका कोई अरेल (४६)-नही जीता जा सकने रग न हो, अवर्ण । वाला । अजित अवल (६२) सर्वश्रेष्ठ, प्रधान, मुख्य, अलख (२३)-अलक्ष्य, ईश्वर । अव्वल । अळगा (५३)- दूर। | अवलौ (४१)-वाकुरा।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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