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________________ [ ३ ] किया था और न ईश्वरारा- | अगवाह (५५)अथाह, अपार । धना ही। अरणपार (१४, २८, ३५, ५२)अजायो ( २)- अजातः, अजन्मा । अपार, असीम । अजीत ( ३५ )-वह, जिसे कोई । अणबूझ (६१)-अल्पज्ञ, अज्ञ, अनजान विजय नही कर सके, अजयो। अरणभंग (७)-वह जो कभी नाग न हो अजीता ( ६३ )- अजयी। अरणमोल (४६)-अमूल्य । अजुमाळ ( ६७ )-उज्ज्वल (प्रकाश) | अणरूप (२७, ३५)-अरूप, विना (१०२)-उज्ज्वल करिए, रूप का। वश को उज्ज्वल | अरणवर (१३, ६४)-विवाह के अवसर करने वाला। पर दुलहा अथवा दुलहिन के साथ अजुमाळा (६६)-उज्ज्वल करने | रहने वाला सखा या सखी । वाला। अरणवी (३१)--'लाना' का प्रेरणार्यक अजू आळिया (७६)--उज्ज्वल किये। रूप । अजे (२६) अभी तक । अणसही (७७)-अनुचित । अटल (३७)-दृढ । अतरी (२१)-ज्ञानी। अठ (४१)--यहाँ। अतळीवळ (६६)-अतुलित, बलशाली अडियो (२९)-अट गया, भिडा । अताग (८) त्याग रहित अयवा अत्याज्य । अडूर (१२, ३७)-जवरदस्त, अति (४२)-अत्यन्त । वलशाली। अतीत (३५)-निर्लेप, विपम, पृयक । अरणकल (७, ५४)-समर्थ शक्तिशाली अत्र (५०) यहाँ। वीर। | अमीरी (दीकरौ) (६६)-अत्रि ऋषि का श्रण (अरणजीव ?) (४०)-नही। पुत्र दत्तात्रेय ऋपि । (४९)-विना, रहित । अथरवरण (३१)-अथर्ववेद । अणकल (२७)-ममर्थ, शक्तिशाली ।। अयाह (३६, ७४, १८)-अपार, अणघड (६१)-अनगढ । असीम । अरगजायो (४५)-अजन्मा । अदल (२७)-न्यायशील । अरणयाह (१८)-जिसकी कोई सीमा | अदला (१०३)-(अदलादेव)न हो, अपार । न्यायकर्ता।
SR No.010757
Book TitlePirdan Lalas Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages247
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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