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[ ६० ] :
|| चोपई॥ काइम राजा प्रावहु राण, जांणां हूँकी तू घणजाण । परो चढे नी पुरुखि पुराण, रेवत रै ऊपर रहमारण ॥१॥ पहली वहिलो पवग पलारिण, ईसा मूसा मुहमंद प्राण । खूटविहो असुरा री खाँरिण, मेघां री कन्या ना मारिण ॥२॥ आवौ :उरा प्रमेसर एक, हिंदू तुरक हुवै नी हेक। नरहर गुरहर तुहिज अनेक, तू राखै गाइया री टेक ॥३॥ भाइया री वेगी करी भीर, वडा धणी सुहिद्रा रा वीर । मारि परा दइता ना मीर, पुणं चौपई बारट पीर ॥ ४॥
॥ हो । कीरति कही कुराण मां, मिरिणजे वरग मंजार । राजा किन्या रासि रै, देव तिको दातार ।
|| सोरठा ॥ मळिया मेछा मारण, पापी चौकस पीलिरा । आलम जी री आरण, आज हुई इळ ऊपरा ॥२॥ नरिंद किलग ने नाथ, खड़ि खडिस रिण खेत मे। मीग तू ससमाथ, सतगुर तू सबळो सही!! ३ ॥
॥ कवित्त ॥ एक एक इनेक, एक अविगत उद्यासी । मामी के मारियो, मुकद के मारी मासी । कुणबी के कूटियो, कुणे दहकंध नां दहियो । तू गरढो गोडियो, कुणे थारी जस कहियो । पीरदांन कहै प्रादेस प्रभु, भूधर थे तो भांड हौ। ताहर जानि तुरका तणी, मेघा रै घरि माडही ॥१॥