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प्रभ आधारे प्राणीयो, नाम तुहारी नाऊ । बोढे मत खाट विरिदि, दुतर छै दरीयाऊ ।। १२ ।। तोरि तारि कासिप तणा, विसन तुहारी वार । प्रो किमि कर तरिज अनत, सागर कहर संसार ।। १३ ॥ तारण नाम तुहाइलो, अईयो केवळ आप। औ भवसागर आतिमा, तु वेडा डड वाप ॥ १४ ॥ अहि सारीखौ विसव ओ, रखवाले श्री रग । तना न भुजिसै त्रीकमा, भ्रखिसे तिका भुइगि ॥ १५ ।। पीरै सां पुरिसोतमा, हिम करीज हिति । भगति दिवारौ भूधरा, नाम लिवारी निति ।। १६ ।। कान्हइया थारा करम, वाह वाह जदवंस । इणि ससार हुँता अनत, हुँ वीहा हरि हस ॥ १७ ॥ देव हिम कीजै दया, वडा धरणी रिणि वाढि । औ ससार कोहर पावसि, कोहर हुँता काढि ।। १८ ।। 'भमती राखे भूवरा, जगजीवन घण जाण । धरणी तुना हुइसै घरम, तारै तो तुडिताण ॥ १९ ॥ तारिस तौँ मिळसै तुना, तू तारिस तो तारि। भगतवछळ दाखै भगत, वारै तौ जम वारि ॥२०॥ कितराई दोरा करे, दिये घणा नां दोस । भूत तुहारा भूधरा, साहिब राखै सीस ॥ २१ ॥ हरि दोरौ सोरौ हुये, लाछि तणा कर लाजि । तुसिगळा मा त्रीकमा, नरहर जीव निवाजि ॥२२॥ अरज करा छा आपना, घणनामी निरघोस । प्राणी प्राणी ना प्रभु, मुकद समापो मोख ॥ २३ ॥ जर तुहारो जांगीयो, हुये दईता हार । 'करै कहिये केसवा, तु लागे करतार ॥२४॥