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निमो निमो जगनाथ, वडौ ठग हुऔ विसंभर। काठी झाली किसन, भगति नह समर्प भूधर । मनछा क्रम मूझ ना, वळे वाचा क्रम वसियो। क्रम ना अति कोपियो, क्रमे ले मूना कसियो। भगति रौ, सहो समॆ भाजियो, वभ सभ थारै वंदा । मोहरे अंदर माहे अतर, गरव किया मैं गोविंदा ॥१८शा गरव कियो ले ग्राम, पासि अभिमान रहै पिरिण। अक रहै अहंकार, गेम पातिग कन्हें गिरिग । पाखंड मा करौ पीर, सुमन राखौ भाखौ सति । किस वडाया करो, इती तोफान करी अति । विन भजन कहै तू विसनौ वडो थूल सरिखौ बछा। पीरदास कूड बोले प्रभु, दास नहीं कहैं दास छा ।।१८।।
॥ इति श्री ग्यान चरित सपूर्ण लिख्यौ छै सवत् १७६१ ॥