________________
जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि बोल भलाई पिण 'जिनराज', तई मोसुन करी महाराज जउ जाणउ पोतानी लाज,राखिसि तड द्यउ अविचल राज।५ (११) श्री श्रेयांस जिन गीतम्
राग- मल्हार एक कनक नई वीजी कामिनी रे, दूभर घाटी देखि । मारग मारग चलतां चीत न अउहटइ रे,
भेटइ भविक अलेख ॥१॥ ओलगडी ओलगडी सुहेली श्री श्रेयांसनी,जउ करि जाणइ कोइ। ओलगतां ओलगता ओलगाणउ पहुँचइ चाकरी रे,
आप समोवडि होइ ।।२।। ओ०॥ आठ पहर हाजर ऊभउ रहइ रे, न गणइ साझ सवार। सइंमुख सइंमुख नइ परपूठड सॉमची रे,
कोई न लोपइ कार ॥३॥ ओ०॥ आठ अछइ अरियण अरिहंत नारे, न करइ तास प्रसग । साजणीया साजणीया साहिब नइ वालहा रे,
तिणसु राखइर ग ॥४॥ ओ०॥ नाथ अवर मायई करता हुस्यइ र बिहुँमामेमाणेज । श्री जिन श्री 'जिनराज' विहु घोड़े चढइ रे,
साचउ प्रभु सुहेज ॥५।। ओ०॥ (१२) श्री वासुपूज्य जिन गीतम् ढाल-१ चरणाली चामड रण चढई
२ कडुआरे फल छे क्रोधना नायक मोह नचावीयउ, हु नाच्यउ दिन रातो रे ।