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भी मिलती हैं । कलकत्त' की सिंधीजी वाली सचित्र प्रति दस हजार रुपये की कीमत से भी अधिक मूल्यवान है। इससे चौपई को लोकप्रियता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इसकी कथा वडी सरस और मधुर है। वह जीवन के अभेद्य रहस्यो को खोलकर सामने रख देती है । भोग और योग का अद्भुत समन्वय, आत्मा, की स्वायत्तता और परवशता वे चिंतनविन्दु हैं जो जीवन के मोड को सहसा वदल देते हैं। शालिभद्र उन नायको मे से है जो स सार को फूल की तरह सुन्दर और कोमल, काया को मक्खन की तरह मुलायम और स्निग्ध तथा अपने आपको सबका स्वामी और नियन्ता मानता है। पर अचानक माता भद्राके वचनो को सुनकर "कि स्वामी (राजा) श्रोणिक अपने घर आया है" शालिभद्र का अन्तर क्रन्दन कर उठता है___ 'एतला दिन लग जाणतो, हुँ छु सहुनो नाथ । माहरे पिण जो नाथ छे, तो छोड़िए हो तृण जिम ए पाथ ॥४॥ जाणतो जे सुख सासता, लाधा अछ असमान । ते सहु आज असासता, मैं जाण्या हो जिम स ध्या वान ||५||
(पृ. १३२) और वह एक एक कर बत्तीस स्त्रियो का परित्याग कर मुक्ति के उस पथ पर बढ जाता है जहाँ कोई किसी का नाथ नही.. "उठ्यो आमणदूमणो, महल चढयो मनरंग। फिरि पाछो जोवै नही, जिम कंचली भुयग ।।' (पृ० १३३)
[२] आध्यात्मिक या उपदेशपरकः-- गुणगाथात्मक या स्तुतिपरक पदो मे भी आध्यात्मिक वातावरण और देशना है । पर वहाँ कथा या चरित्र विशेष को प्रधानता दी गई है। यहा स्फुट पदो मे संसार की असारता, जीवन की नश्वरता धर्म-प्रभावना आदि का जो चित्र प्रस्तुत किया गया है। वह सन्त कवियो की तरह वाह्य क्रिया-काडो का विरोधी
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