SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ विरचइ विरूपउ जिनराजसूरि कृत कुसुमांजलि विणसी जाय २११ विनष्ट हो वेसास २७, ७५, १६९ जाती है विश्वास विनडइ २२, ९० नमा लेता हैं, पराभव विमासी २६,१५६ विमर्शकर श्रव २३८ सर्व १६९ विरत होना सइमुख १७० स्वयमुख से, २०९ विरूप रूबरू शरीर विलकतउ १७७ विलक्ष होता स धयण का सगटन विलूधउ ७० विलुब्ध विलूघी . ७८ विलुब्ध हुई सवाडउ पे घाटक, विल रनइ २२० विदीर्ण करके समुदाय साति विवरचउ विवेचन किया ५८ २३८ साथ सजलनउ ५७ सज्वलन विहाण ५७ विधान कषाय वीगताला १२९ व्यक्तिलशाली वीटियर ५८ ७४ सजुउ वेष्टित, घेरा सयुक्त सजोडि जोडी हुमा १८८ दुलाते है, सथुउ सस्तुत, व्यजन करतेहै सस्तवना की वीर १४१ भाई सपजइ १९१ समाप्त हो वीटयर २०५ घिरा हुआ सपेखि १२० देखकर वीरा १२६ भ्राता ससो १५७ सशय वुज्जोय ५४ उद्योत ३६ सावी सइवसि दूहा २३२ वहन किया २११ स्ववश मकज देगलत ६, ३६ शीघ्र १४५ समर्थ देठि ७५ प्रतीक्षा सकजउ १८१ समर्थ २३१ वेल, अगूठी सखरउ २३६ सुन्दर,अच्छा वैदि २२७ लडाई सघाडै १५४ देखो मघाडउ १८९ विधान माप सनपीढिया १६७ परम्परागत देय १५ वेद सतसट्टि बेयण ५८, ५५ वेदन, वेद ममउ २२५ समय नीय कर्म ५५ सम्यक्तव वाही २२५ वैवाहिक १२७ दूसमर्पितकरू सम्बन्धी सगे समापउ १७८ दो धीजइ सङगू देत सडसठ समापू
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy