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सं० १६८१ राखीप नम के जेसलमेर में युगप्रधान श्री जिनचद्रसूरि जी के शिष्य पं. सकलचंद गरिग के शिष्य उपाध्याय समय सुन्दर के शिष्य वादोराज हर्ष नन्दन के शिष्य पं० जयकीर्ति ने प्रस्तुत काव्य रचकर संपूर्ण किया।
जिन राजसूरि जो के जीवनचरित्र के संबध मे श्रीसार नामक एक अन्य कवि ने भी रास बनाया जो हमारे ऐतिहासिक जैन संग्रह में प्रकाशित हुआ है । वह रास स० १६८१ असाढ वदि १३ सेत्रावा मे रचा गया था । अर्थात् उपरोक्त जयकीतिके रास के प्रासपास के दिनो में ही रचा गया है । अतः उपरोक्त दोनो रास जिनराजसूरि जी की विद्यमानता मे ही रचे जाने से पर्ण रूप से प्रामाणिक हैं । इसके बाद करीब १८ वर्ष तक और भी आपने शासन-प्रभावना की, जिसका प रा विवरण तो नहीं मिलता पर एक ऐतिहासिक गीत से एक महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है कि सं० १६८६ के मिगसर बदि ४ रविवार को आगरे मे श्राप सम्राट शाहजहां से मिले थे। और वहाँ ब्राह्मणो को वाद-विवाद में परास्त किया था तथा दर्शनी लोगों के विहार का जहां कही प्रतिषेध था, उसे खुला करवा कर शासनोन्नति की थी। शाही दरंवार मे मुकरबखानने आपके साध्वाचार की बड़ी प्रशसा की थी।
जसु देखि साधु पणो भलो हरखि दियो बहुमान ।
साबोसि तुम्ह करणी भली कहइ श्री मुकरब खान ।। ' शाहजहां से मिलने के संबध में दास कवि ने लिखा है"साहिजहाँ पातिसाह प्रबल प्रताप जाकी,
अति ही करूर नूर कौन सर दाखी है ।
१- समयसुदर जी और हर्षन इन जी का परिचय देखें 'युगप्रधान जिनचद्रसूरि' पृ० १६७ से १७१ तक । जयकीति कृत पृथ्वीराज वेलि चालाववोध उपलक्म है।