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________________ १४७ - - . शब्द कोग आससेन . ५७. अश्वसेन.. उतावला १४२ जल्दबाज (भ० पाश्वनाथ उदीरने १४२ उदयमे (कर्मों के पिता) को) प्रयत्नसे लाना आसगा १२९,१४४ आशका उन्हाल १५५ उष्णकाल आसग १३१ माश्रय उपरवार्ड १३८ ऊपरी मार्ग आसगायत ७६, १४८ आश्रित उपाड १६६ उठाव आहीठाण ३५, ६९, १५२ उपाडिस ७४ उठाऊ गा अधिस्थान उभग्यउ १९७ उद्भग्न हुआ उभगइ १९१ उथप जाना इकलास १३६, १६३ प्रीति अधा जाना इगसय ५५ एक सौ उरै १४७ इधर - इच्छे वेय ५५ स्त्री वेद उलगाण १२९ सेवक इवर्ड १५९ ऐसे उलट . १६५ उल्लास . उलभा ७८ उपालभ . ईहणा २३६ इच्छुक उललिये १३७ उलट जाने। उवइसइ ५४ उपदेश देते हैं उकसइ . १७५ उत्कर्षित उलसतइ २११ उल्लासमान हो उखाणो १५६ कहावत, उवघाइ ५४ उपघात उगतउ १६९ उदय होता उवटि , १४० उन्मार्ग उच्छक १४२ उत्सुक उवसत ५४ उपसात उछलइ २३१ फहराती है उवसिमिग ५५ औपशमिक उछाछलउ १७७ चचल उवेख , २७ उपेक्षा उछहामणउ १७७ उवेखसे १४१ उपेक्षा करेगा उछेरइ १७७ (वच्चे को) . उसास ५४ उश्वास खेलाना उछेरघउ १५९, १७८ खेलाया ऊ पाला पोषा ऊघ १९० निद्रा उज्जोय ५५ उद्योत ककसि ७५ उत्कर्षित उझित . १६४ ऊगटी . ..२ __EEEEEEEEEEEEEXXX REFs.
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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