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पहरावणी की । राणकपुर, गिरनार, सेरिसई गौडीपुर, पाबू आदि तीर्थों की सव सहित यात्रा की, साधर्मी वात्सल्य किया। खरतर गच्छ संघ मे लाहरण की प्रत्येक घर मे अर्द्ध रुपया दिया। स्वर्मियो को बहुत बार सोने के वेढ पहनाए । शत्रु जय पर 'च'त्य वनवाया। सोमजी शाह के रतनजी और रूपजी दो पुत्र
थे । रतनजी के पुत्र सुन्दरदास और शिखरा सुप्रसिद्ध थे। रूपजी शाह ने शत्रुञ्जय का आठवां उद्धार कराके खरतर गच्छ की; बडी न्याति फेलाई । सं० १६७६. वैशाख शुक्ला १३ को चौमु-, खजी की प्रतिष्ठा श्रीजिनराजसूरि जी के हाथ से करवाई। मारवाड, गुजरात का संघ आया। याचक, भोजक, भाट, चारणों को बहुतसा दान दिया।
श्रीजिनराजसूरिजी ने संघ के साथ विहार कर नवानगर में चातुर्मास किया। भागवड मे शाह चांपसी (बाफरणा) कारिब विम्बो की प्रतिष्ठा की । गुरु श्री के अतिशय से विम्ब से अमृत झरने लगा। जिस से अमोझरा पार्श्व प्रसिद्ध हुए। मेड़ता के संघपति आसकरण ने आम त्रण कर स० १६७७७ मे श्री शांतिनाथजी के मदिर की प्रतिष्ठा कराई। बीकानेर चातुर्मास कर सिंधु पधारे । मुलतान, मेरठ, फतेपुर, देरा के संघ ने सामैया कर प्रवेशोत्सव किया। मुलतानी सांघ ने बहुतसा द्रव्य व्यय किया। गणधर शालिभद्र, पारिख तेजपाल ने सच निकाल कर स रिजी को देरावर श्री जिनकुशलस रिजी की यात्रा करवाई।
१- शिलालेखो में गुजराती पद्धति से सं० १६७५ लिखा है। २. शिलालेखो में जेठवदी ५ लिखा है। ३- इसके प्रतिष्ठा-लेख जिनविजय जी सम्पादित 'प्राचीन जैन-लेख .
संग्रह' में प्रकाशित हैं।
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