________________
२१२ जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
पाच समिति निरिण गुपित मई, पालइ प्रवचन मात। - छज्जीव नी रक्षा करइ, करइ नही परताति ॥२॥ . सामाचारी साधुनी, जारगइ दसे प्रकार । सत्तावीस गुरणे सहित, राजसीह अरणगार ||३|| मुनिवर मोटउ महीयलइ, निरमल चारित्र पात्र । विषय कषाय रहित सदा, सुप्रसन वदन सुगात्र ||४||- -. तप दहाडि मांडल तणा, दीधी वडी सु दीख । राजसमुद्र दीयउ नाम ए, सूधी पालइ सीख |शा उपधान हा भाव सुं, आगम ना जे जोग। तप सगला कीवा तुरत, सहू वखारगइ लोग |६|| गच्छनायक गुरु जे कहइ. मानइ वचन तहत्ति । 'सीस सिरोमणि चुंप सु, गुरु पासइ भगइ झत्ति ॥७॥ .
सर्व गाथा १२३] दाल-छही रोग--मारुणी जाति-जोल्हग वहिला आविज्यो
रे पहनीगुरु पासइ प्रावो करइ रे, सास्त्र तरणउ अभ्यास । विनय करी विद्या भरणइ रे, वारू बचन विलास ॥१॥ भगिवा मांडियट रे, आँपगडइ मन रंग भ०॥याँकरणी।। श्री गुरु आगइ हरख सु रे, वयसइ वे कर जोडि । मुहड़इ देई मुहपती रे, भगइ नित आलम छोडि भ०॥ पाचाराँग १ सूत्र सूगडाँगर रे, ठारगाँग ३ समवायाँग ४। भगवती ५ न्याता घरमकथा ६ रे,
उपासकदसा ७ मतगड ८ चंग ॥२॥भ०॥ अंगुत्तरोषवाई ६ प्रसन नउ रे, व्याकरण १० विपाक ११ सिद्धांत । अंग इग्यार भण्या वली रे, प्ररथ लीयउ अभ्रांत म०॥.. उववाई १ रायपसेरिएका २ रे, जीवाभिगम ३ विचार। .