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जिनराजप्रि-कृत्ति-कुसुमांजलि
लोक लगावू एहनड, जारणइ इम नवि कोजइ रे। खूह पड़ी भारी हवड, जिम-जिम कंवन भीजड रे ॥१०सी०॥ इण नीलज सेती हिवइ, राग नही मुझ कोई रे। सोढइ मूकी गटसू, जिम भावइ तिम होई रे ॥११शासो०॥ करता स्यु कीजइ नही, एह महिणउ लागइ रे । निरगुण भेदोजइ नहो, मुझ ए वोजइ तागइ रे ॥१२॥सो०
[सर्व गाथा ४७५]
॥ दूहा ॥ सालइ साल तणी परइ, जउ चूकू अवसाग । पिंड माहि राखं नहीं, पापो इण ना प्रारण ॥॥ वाल्हउ वइरी इम मिलइ, कीजइ किसउ विलंव । ए पिरण जारगइ किम कदे, प्राक न लागइ अव ॥२॥ ध्यान धरी ऊभउ अछइ, थिर मन करि जिम थंभ ॥ पिरिण इणि विधि वेदन करू, दुरि टलइ जिम दभ ॥३॥
सर्व गाथा ४७८
ढाल-२६ कागलीयर करतार भणी सी पर लिखू-पहनी कुमति घरी तिणि पापी पापनी रे, दस दिसि सनमुख देखि । रिषि मारण साहस सवलउ कीयउ रे,
हरिनउ भय ऊवेखि ॥१॥कु०॥ सरस सरोवरनी माटी ग्रही रे, जिहा किरण गजसुकमाल । तिरण थानिक ते निरदय आविनइ रे,माथइ बांधइ पालि कू० फल्या केसू जिम राता हुवइ रे, तिसा अरुण अंगार। जलती चहि* हुती पाणी करी रे,
रिषि सिर ठवइ गमार ॥शाकु०॥ *पिह, पह