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श्री गजसुकमाल महामुनि चौपई
गिरणसी दुख सुख रासि, मुगति तउ साधिसी ||६|| भट निपट, छछोहा छूटिसी,
मोह कटक
चरण करण धन माल, प्रमामउ लुटिसी । पीज्यउ सूत, कपासज सूत, कपासज थाइसी, नरवर रा नोसाण, घडाया वाजसी ॥७॥ माल क्षमा गढ माहि, द्वारि रहसो *चढी,
बार भेद तप योध, तणी चउकी खडी । भावना नालि, चढाई कागुरे,
मोह कटक बल छोडि, पइसिसी भागुरे ||८|| दूषण वड़तालीस, रहित नित गोचरी,
करवी मधुकर जेम, सोच तिम लोचरी । कनक कचोला छोडि, लीयइ वछ काछलि,
सभारइ मनि वीतग वात न पाछली ॥६॥ देसइ जे आधार, महामुनि देहनइ,
,
खप करता किम दोष लागिस्यइ तेहनइ । आजूरणउ धन दोह, गिरणता जीइस्यइx,
काछलीए चिरकाल, लेई ब्रत जीविस्यइ ॥ १० ॥ सहस बहुतरि मात, तात वसुदेव नइ, कान्ह बलदेव नइ । रामेकड
जोवन प्राण समान, सहस बत्रीस, तर उ
तुझ अनुमति देवा कुरण, सवि स्वारथ परिवार, मिलइ आवी
करिस्थइ एकडउ || ११||
कात्यउ
वार
भावज
परभव जातां जीव, न पलटइ + जेहराउ रंग, पतग तर उ
* सुजडी, वडी X जास्यइ + एटलइ
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भइ,
को साथे चलइ ।
जिसउ,