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जिनराजस्यूरि-कृति-कुसुमांजलि
इम मन माहे चितवी, पभरगइ गजसुकमाल । मात पिता पूछि करी, व्रत लेग्यु ततकाल ||७|| प्रभु चाँदी पाछउ चली, भावी माता पास । वइरागी इण विधि करइ, वचन लगउ परकास ||८||
{सर्व गाया १८३ }
दल-१७ करतां सूतउ प्रीति सहु हीसी करइ रे एहनी ज्ञात्ति हास विलास विनोद, विविध सुखमारगतउ रे । वि० दुरगति भय लवलेस अलवि नवि आणतउ रे । प्र० खाता पीता सरग हुस्यइ इम जाणतउ रे । हु० पोतानी मति सीख, समापी ताणतउ रे ॥शास०॥ वारणी श्री जिनराज, तगी काने पड़ी रे। त० जॉमिरिण वे प्रांखि, आज मुझ ऊघडी रे ।। मा० फल किपाक समान, विषय सुख रेवडो रे। वि. वाल्यउ मन वइराग, सफल* मुझ ए घड़ी रे ॥२शाए. पाडोसरिण रा पूत, मरइ छइ तउ मरउ रे । म. मुझ हुती ए काल, सही रहिस्यइ परउ रे ।। स०॥ यादव चउ परिवार, अछइ मुझस्यु खरउ रे । अ० आज लगइ इण भाति, हतउ मन माहरउ रे ॥३०॥ जमचीx प्राण प्रखड, जगत ऊपरि जकई रे। ज० आगलि पाछलि प्रावि, चढइ सहु को धकइ रे॥ च. इद नरिंद जिरणद, न को छूटि सकइ रे। सार मरइ निरधार, पडी प्रावी क'छइ रे ॥४॥१०॥ तीन लाख छत्रीस, सहस सुरपति तणी रे। स० पातम रक्षक देव, रहइ रक्षा भणी रे। २० *सफल सफल xजामनी नाण