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जिनराजसृरि कृति कुसुमांजलि
वास्यइ ए तिरण मुझ भरणी, हरख एह श्रममान || ३ || सेवक मुख हुती सुरगी, सोमिल ए हरिण । हाथ जोडि मन कोड सू तुरत करड परमाण ||४|| कन्या अ तेउर ठवी, सामी तुझ प्रदेस | सेवक वोलइ सामिनी, आरण सदा जिम सेस ||५|| सहस्राववन श्रविनइ साचवि साचवि अभिगम पच । हरि सेवइ श्री नेमिनइ, छोडी मन तिहा वारह परषद मिली, सामी सुरणता वचन सुहामरणा, न हुवइ कोइ कलेस ॥७॥
परिपंच ॥६॥
द्य उपदेस ।
[ सर्व गाथा २६४ ]
ढाल - १६ राग गोडी विणजारानी
जी जागउ रे माथा ढलीयउ * सूरि । ऊडी ऊ घ न प्राखथी जी० । वाजरग लागा तूर । कटक पडचउ चिहुँ पाखती । जोवउ हियइ विमासि । सूता कुरण वेला थई जी० जुडिस्यइ किम धन रासि । सारी मुहसम वह गई ||२||जी० ॥ नारणउ नीद्र नजीक । श्राया अवगुण हुइ जिरगइ जी० वचन छइ लोकीक । सूता री पाडा जिरगइ ||३||जी० || द्यइ जिरणवर प्रतिवोध । वात नही विगडी प्रजी जी० । परिहर विषय - विरोध | मोह मिथ्यात निद्रा तजी ||४||जी०|| अलग रियण साथ । काया गढ भेल्यउ न छइ जी । जी० हाथ वसु करि प्राथ। न कहउ जे कहिस्थउ पछइ ||५||जी० || - वारू तउ जउ पालि । पारणी पहिली बाधीयई । जी० सूटउ धनुष निहालि । स्युं थायइ सर सांघीयइ ||६|| जी० ॥ लाखीणउ दिन जाइ । चेतन को चेतउ नही । जी०
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* वडियो