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जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
थास्या जन्मान्तर हिवै रे हां, हम तुम नवल सनेह मेरे० ॥१०॥ पाछलि वीतिक वीचस्यै रे हाँ, जॉरगइलो करतार मेरे० जिम तिम रोवता वउलस्यै रे हा, ए सारी जमवार मेरे० ॥११॥ इण डुगर चढवा तणी रे हॉ, आज पर्ड छै सीम मेरे । हाड़ी ल्यावै पखीया रे हाँ, तो मत भाजो नीम मेरे० ॥१२॥ घर आवी पाछा वाल्या रे हाँ, जगम सुरतरु जेम मेरे० ए दुख विसरस्यइ नही रे हाँ, हिव कहो कीजे केम मेरे ॥१३॥ एकरस्यो घर आँगण र हाँ, सैहथ प्रतिलाभत मेरे । लाधो नरभव आपणो र हाँ, तो हु सफल गिणत मेरे ॥१४॥ प्राजूरण अरणवोलणे रे हाँ, भलो न कहस्य कोइ मेरे। पहिड़े पेट जो आपणो र हाँ, नो कलि उथलो होय मेरे ० ॥१५॥ ए साजण मेलावडो रे हाँ, ते जाण्यु सहु कूड मेरे । हिव लालच कीजइ किसो र हाँ, आप मूॉ जग बूड मेर० ।।१६।। ते विरहीजन जाणस्यै र हाँ, वीतक दुखनी वात मेर। नेहे भेदाणो हुस्य र हाँ, जेहनी साते धात मेरे ० ॥१७॥ आसा लूघाँ माणसा र हाँ, जमवारो क्रिम जाय मेरे । देव निरास कियाँ पर्छ रे हां, पापी मरण न थाय मेरे ० ॥१८॥ हुँ पापरण सिरजी अछु र हाँ, दुख सहिवा ने काज मेरे। दुखिया ने ऊतावलो र हा, मरण न घे महाराज मेरे० ॥१६॥ मीठा बोल म बोलज्यो रे हाँ, मत करज्यो का सीख मेरे। नयण नीहालो नान्हडा र हाँ, जिम पाछी छ वीख मेरे ० ॥२०॥ -
॥हा॥ माता विविध वचन कहया, धरती निवड़ सनेह। । पिरण समतारस झीलते, नाणी मन मे तेह ॥१॥ भामिणी वत्तीसे मिली, कीधा कोडि विलाप । पण नायो मन ढूकडो, तसु विरहानल ताप ॥२॥