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________________ १४८ जिनराजसूरि-कृति-फुसुमांजलि धन्नो एक मन्नो थई, ऊठण लागी जाम । पालव झालि इसौ कहै, नारि सुभद्रा नाम ॥६॥ ढाल-२. राग सोरठ जो माणस करि लेखवी, तो मति जावो ठाडि लाल रे । जास्यो तो ही राखस्यु वालक जिम रढ माडि लाल रे ||१|| रह रह रह रह वालहा, बटकि म तोडो नेह लाल रे । सहज सलूरगां माणसा, इम किम दीजै छेह लाल रे ॥शारह। आसगाइत जे हुसी, ते कहिस्यै सो वार लाल रे । पिण विरचरण देस्यै नही, करस्यै कोटि प्रकार लाल रे ॥शारह. पोछी अधिको सांभली, हसीय गुदार तेह लाल रे । प्रवगुरण गुण करि लेखवै, साचा साजन तेह लाल रे ॥४ारह. दांता विच दे प्रांगुली, लुलि लुलि लागे पाय लाल रे। हांच विछाई ने कहु, हिवरणां तजि मत जाय लाल रे ॥शारह. घरगी वचने घर तज, सोम न लहीये एम लाल रे । माखी तो मारै नहो, मुलको मारे तेम लाल रे ॥६॥ारहु० एवड़ो गुनहो न को कीयो, कार न लोपी काय लाल रे । 'जो छीकता दंडिस्यो, तो क्यु कहयो न जाय लाल रे ॥७ारह. विरचण हारा विरचस्य, कूडो ही देह दोस लाल रे । पिण पापी मन नवि रहै, सास हुवै ता सोस लाल रे ॥धारहु. पोगो सासरीयाँ तरणी, पीहरड़े न खमाय लाल रे । पीहरीयां रो सासरे, मूलि न खमाणो जाय लाल रे ॥रह. बधव दुख दाधी हुती, ऊपरि प्रीतम गउरण लाल रे । जारणे दाधा ऊपरै , देवा मॉडयो लवण लालरे ॥१०॥रह०॥ देखो दुख वाटण समै, अलिवी पडी मन राय लाल रे। लेणे थी देणे पड़ी, इम ऊभी पछिताय लाल रे ।।१शारह ॥सोरठा ।। . प्रीतम नो लवलेश, मन पिरण डलारणो नही। फेरि दिये उपदेश, भामरिण नै प्रतिबोधवा ॥१॥
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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