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जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
हिव किण ने जीमाडि नै रे, सफल करिस भाई बीज । कास पयोहर वीछीली रे, हु देखसु भात्रीजो रे .वै. केहने बाँधिस राखडी रे, गाइस कहने गीत । कुरण मोसालो मूकसी रे, तिण विशेष सचितो रै भाव एक घडी पिण जेहनो रे, कठिन विरह खग धार । तो जामण जाया पखे रे, किम जास्यै जमवारो रे ।।१०व०
॥ दूहा ॥ मुह मचकोडी तिरण समै, बोले वोल रसाल । साहसीक सिर मुगट मणी, धन्नो धिंगडमाल ॥१॥ वलि वलि वीरो दोहिलो, न्याय तिणे दिलगीर। पिरण कायर सिर सेहरो, सालिभद्र तूझ वीर ||२||
प्रारभ्यो तेहनो सफल, जे कर घाले पार । पारिग वलि माहे पेखता, थार्य अवर प्रकार ॥॥ प्रेम मगन ते किम रहै, मन उपाडया जाह । . प्रागलि पाछलि छोडवो, तो किसी विमासरण ताह ॥४॥
ढाल-१६ फूलडा गुजराति वहिनि रहि न सकी तिस जी,साभलि प्रीतम बोल । - स्यु अवहेलो माहरोजी, इणि परि वीर निटोल ॥१॥
मोरा प्रीतम ते किम कायर होई । , कथन न माने माहरो जी, तो आप विमासी जोइ ॥रामो० काची कोडी छोडता जी, वीस करै बेखास । प्राथि छती जे अवगिण जी, तेह नै यो सावास ॥शामो० रतन जडित घर आगरणा जी, सोवन मय घर बार । . इण अनुसार जाणज्यो जी, रिद्ध तणो विस्तार ॥४॥मो.
वयातीत पोते थयो जी, गलित पलित घर नार । . ते परिण व्रत लेतो छतो जी, पडखे वरस बि चार ॥५१ मो०