________________
कर्म बत्तीसी
११६
आप कमाया फल पामीजइ,अवर न दीजइ दोस जी ॥२८क इणि परि करम विपाक विचारी, छेदउ करम कलेस जी। जिम अविचल सुख संपद पामइ, प्रणमइपाय नरेश जी ॥२९क नव षट सोल (१६६९) प्रमाणे बरसे,भादव वदि गुरुवार जो। 'करम बत्तीसी' निसि भरि कीधी,धरि सवेग अपार जी ॥३०क 'खरतर' गच्छ नायक जयवंता, युगप्रधान जिनचद जी। तसु पाटे दिन दिन दोपता,श्री 'जिनसिंहसूरिंद' जी ॥३१क तास सोस पभणइ मनरगे, 'राजसमुद्र' सुविचार जी। भणतां गुणतां वलि साभलतां,थाये हर्ष अपार जी ॥३२क०।।