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जिनराजसूरि-कृति-फुसुमांजलि चालणीइ जल काढि सुभद्रा चंपा बार उघाडि जी। सील प्रभावे महिमा वावी,
नाख्यउ आल उपाडि जी ॥१३॥सी०॥ हसी वायस जोडि दिखावइ, जाणी इण मुझ वात जी। मयण वसइ चुलणी मातायइ,
चितीयओ सुत घात जी ॥१४॥सी०॥ भरतहरी काउसग्ग वन माहे, जपइ पिगला नाम जी। डीवी मिसि गोरख समझावइ,
जोवउ विषय विराम जो ॥१॥सी०॥ कलि कारग सहु कोई जाणइ, विरति नही पचखाण जी। तिण भवि शिव गामी ते नारद,
__ जोवउ सील प्रमाण जी ॥सी०॥१६॥ जिनरक्षित सायर विचि वहतउ, रयणा रूपइ भूल जी। खंडो खड करी वलि दीधु', पडतां माडि त्रिशूल जी ॥१७सी० जनक मुता वन मांहि इकेली, मूकावइ श्री राम जी। पावक गंगाजल सम कोधउ,
राख्यउ अविचल नाम जी ॥सी०॥१८॥ सोल सनाह मंत्रीसर रूपइ, भूली रूपणि नारि जी। चक्ष कुसील पणइ दुख लाधा,नरय निगोद मझारि जी ॥१६सी नल राजा देखी दमयंती पूरन भोग संभारि जी। जिम मन डोल्यउ तिम वलि वाली,
पामइ सुख अपार जो सी०॥२०॥ पूरव परिचित वेश्या नइ घरि, थूलभद्र रहा चउमासि जी।