________________
आत्म प्रवोध सुख दुख
१०७
आत्म प्रबोध, सुख-दुख
राग-कान्हरउ रे जीउ काहइ कु पचतावई। हइ किछु घाट कमाई तेरी, तउ अइसे फल पावइ ॥रे०॥१॥ छारि गमान कही काहू कइ, आगइ दांत दिखावई ।। वखत लिखित आवत हइ सुख दुख,रहि नइ अपणइ दावइ।२२० बोवइ पेड आक कइ आगणि, आंब कहां सुखावइ। परम पुरुष संपद अरु आपद, 'राज' रहत सम भावइ ॥रे०३ ___ मन शिक्षा,माया जाल, घड़ी में घड़ियाल
राग-केदारउ मन रे तूंछारि माया जाल । भमर उडि बग आइ बइठे, जरा के रखवाल ॥१॥१०॥ बाल बांधि सिला सिर परि वचइ कित इकु काल । चेत चेतन वाजि जइहइ, घरी मइ घरिआल ॥२॥म०॥ मात तातरु भ्रात भामणि, लाख के लेवाल । 'राज' संग न चलइ वह भी, सामि नाम संभाल ॥३॥म०॥
अस्थिर जग, श्वास का विश्वास ?
· राग-केदारउ कइसउ सास कउ वेसास।। कस अणी परि ओस कण की, होत कितक रहास ॥क०॥१॥ जाजरी सी घरी वाकइ, वीचि छिद्र पंचास। तिहा जीवन राखिवइ की, कउण करिहइ आस ।।क०॥२॥ रयण दिन ऊसास कइ मिसि, करत गवरण अभ्यास ।