________________
श्री नंदिषेण गीत
७५
मउड़उ सउ काने पडयउ, बहिन वचन पीयूष ॥६॥वी०॥ राज रमरिण रिद्धि मइ तजी, हय गय नेक अनीक । ब्राह्मी सु दरि साधवी, न कहइ वचन अलीक ||७|वी०॥ प्रतिबूधउ आलोचतउ, अवर न एवड़ मूढ । हु द्रव्यत गज परहरी जी, भावत गज आरूढ ॥८॥वी०॥ लघु बधव पिण केवलो, वदिसु तजि अभिमान । पाम्यउ पग ऊपाडतइ, अनुपम केवल नाणवी०॥ केवल न्यान न ऊपनउ, इतला दिन नी वेठि । चाप्यउ किम ऊकमि सकइ, बाहर्बाल पग हेठि ॥१०॥वी०।। झूश्यउ बूझयउ ऊवरयउ, आज लगइ सोभाग । साधु तणा गण गावतां, 'राज'तणउ बड भाग ।।११।।वी०॥
श्री नंदिषेण गीत साधु जी न जइयइ जी पर घर एकला,नारी नउ कवण वेसास। 'नदिषेरण'गणिका वचने रहथउ,बार वरस गृह वास ||१||सा० सुकुलीणी वर कामिणी पंचसइ, समरथ श्रेणिक तात। प्रतिबूधउ बचने जिनराज नई,व्रत नी काढइ वात ।।२।।सा०॥ भोग करम पोतइ अण भोमव्यां, न हुस्यइ छूटक वार । बात करइ छइ सासण देवता, लीधउ संजम भार ||३|सा०॥ कचन कोमल काया सोखवी, अरस विरस आहार । सवेगी मुनिवर सिर सेहरउ, बहु विधि लबधि भंडार १४सा० वेश्या घरि पहुतउ अणजाणतउ, धरमलाभ घई जाम । धरमलाभ नउ काम इहा नही,अरथलाभ नउ काम ||५|सा० बोल खमी न सक्थउ गरबइ चडयउ, खांचइ घर नउ नेव।