SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनराज सूरि-कृति-कुसुमांजलि जोता आज विपम पचम अरइ रे, धन नउ तड हिज मान्यउ हीर रे ॥७स०॥ मन सुध भगति करइ 'जिनराजनी' रे, हरि घरिणी धरि थिर थिरपाल रे । संघ धुरा निरवाहण सलहीयइ रे, तू तउ धोरी धवल कधाल रे ॥८॥स०॥ इति भगशाली थिरु गीतम् साधु व्रती गीत श्री शालिभद्र गीतम् मुनिवर विहरण पांगुरथा जी, तव बोलइ जगनाथ । मासखमण नउ पारणउ जी, थास्यै माइडो हाथ ।।१।। महामुनि धन धन तुझ अवतार । रमरिण बत्रोसे परिहरी जी, लीधउ संयम भार ॥२॥म०।। तप रि काया सोखवी जी, अरस विरस आहार । घरि आव्या नवि ओलख्याजी, ए कुण छइ अणगार ||म० महियारी वलता छता जी, दीठा मुणिवर तेह । रोम रोम तनु उलस्यउ जी, जाग्यउ नवल' सनेह ॥४॥म०॥ विहरो गोरस चीतवइ जी, जिणवर भापित तेह । जगगरु पूरव भव कही जी, टाल्यउ मन सदेह ॥शाम०॥ कर जोडी जननी कहइ जी, वादी वीर जिणद। - १. नवलउ नेह २- भद्रा
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy