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जिनराज सूरि-कृति कुसुमांजलि श्री जिनकुशल गुरुणां गीतम्
___ राग - प्रभाती जपउ कुशलगुरु' (२) नाम निसि वासरड,
रिद्धि नइ सिद्धि आपइ सवाई। आपदा माहि तइ हाथ दे ऊधरइ,
___ तुरत दरसण दियइ आप आई ॥१॥ अवर सुर ध्यान धरियइ नही,
ध्याइयइ 'जिनकुशल' सूरि साचउ । आप वसि कनक नी कोडि छोडी करी,
कवण मूरख महइ लोह काचउ ।।२।। वाट घाटइ अइजाइ अलगाटली,समरता निरमलउनीर पावई। देस परदेस धन राज कुशलइ मिलइ,
पूजता मूल योखम न आवइ ॥३॥ एफ मन एक रहणी सुगुरुजे रहइ,ता मन वंछित काज साघड। एक मुनि'राज' प्रभु चरण युग सेवतां,
दिन दिन अधिक प्रताप वाधइ॥४॥
राग धन्यासी. 'कुशल' गुरु अब मोहे दरसण दीजइ। अइसी भांति करउ मेरे साहिब, इहु मन मूढ पतीजइ ।१०।' जल दातार विरुद अमृत रस, श्रवण अजुलि भर पीजइ । सुरतरु सम दरसण विण देख्या,कहउ नयण किम रीझइ ।३कु० परम दयाल कृपाल कृपा करि, इतनी अरज सुणीजइ । परम भगति 'जिनराज' तिहारउ,अपणउ करि जाणीजइ ।३कु०