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जिनराजसूरि-कृति-कुसुमांजलि
रातिदिवस अमत झरइ, तिण साचउ नाम कहावइ रे॥॥प०। सुर सानिधि अजन समइ, जग जीवन ज्योति जगावइ रे। श्रावक नइ सुपनतरइ, दाखी दरसण परचावइ रे ॥२॥१०॥ भगत वछल निज भगत नइ, अरिगंजण अगम जणावइ रे। तो ते सेवइ स्या भणी, जउ परतउ मूल न पावइ रे ॥३॥१०॥ आपण पइ परगट थई, सेवक नउ वान वधावइ रे। जे कारिज करिवा करइ, ते पर नइ केम भलावइ रे ॥४ाप०॥ पुरिसादाणी पास जी, जउ इम अतिसय न दिखावइ रे। इण कलियुगना मानवी, तउ यात्र करण किम आवइरे।।शाप० एकरिण रहणि जे रहइ,नितु चरण कमल चित लावइ रे । सकल मनोरथ तेहना, प्रभु अलवि प्रमाण चढावइ रे॥६॥१०॥ प्रभु विण देव अनरेडा, ते माहरइ मनि न सुहावइ रे। सुरतरु अंगणि जउ फलइ, तउ कबण कनकफल खावइ रे७५० 'भाणवड़ई' थिर थानकइ, अतुली बल अधिक प्रभावइ रे । मकी मन नउ आमलउ, तिण कारणि सहुको ध्यावइ रे बाप अलिय विधन दूरइ हरइ, अरिअण नइ आण मनावइ रे । श्री 'जिनराज' सदा जयउ, दिन दिन चढतइ दावई रे॥१५०
श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ गीतम् करिवउ तीरथ तउ मूकी रथ, धीर थई पगले चलउ । तिल पाप नथी आगमन थी, मन थी हो मूकी आमलउ ॥१॥ वहता मारगम करउ कारग, तारग गुरु आगलि कीयइ । सवि एक मता वलि मन गमता, समताधर साथइ लीयइ॥२॥