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जिनराजसूरि कृति कुसुमांजत्ति
धन घोर मोर कि सोर वोले, श्याम इण रितु सभरइ ||१|| दूभर निशि भादू तणी, यादू विण क्युं जाइ । प्रेम पियालउ पीजीयड, घन वरसइ झरु लाइ । झरु लाइ वरषइ सर्वाहि हरषइ, अवहि राजुल पर वसई || -तरफरइ नीद न परइ इक छिनु, नाह नयतन तुमइ वसइ । लोचन उनीदे मिलइ कवही सुपनि प्रीउ संगति वणी । जन झवकि जागू ं तब न दीसइ दूभर निसि भादू तरणी || २ || संदेसउ सखि पाठवउ, आयउ मास कुमार
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राति दिवस कइ कूकरगई, कबहु लगई पुकार पोकार प्रीउ दरबार करिओ, झूठ दोस पसू दियउ दिल मांझ सुगति वधू वसी, तिरण मोहनी मोहन कियउ निसि कुसुम सेज निहेज सूती, दहइ ससि पावक नवउ संदेस साचइ नेमि राचइ, सो सखी मिलि पाठवउ ||३|| कातिक रीति भई नई, उलटयउ विरह अगाघ राजुल वलि वलि वनवइ, कउरण कीयउ अपराध । अपराध विण परिहरइ यादव, कउरण वात कहीजियइ इक पाल मइ सउ वार सालइ, कंत विण क्युं जी जीयइ इक पखउ क्यु ं करि नेह निवहइ, वइरागिणी राजुल भई सिवमहल 'राजसमुद्र' प्रभु सु, प्रीति तहांजोरी नई ॥४॥ श्री नेमिनाथ गीतम् राग - सोरठी
तउ तुम्ह तारक यादुराय जहु मोहि तारउ, धरिहु निसि दिन ध्यान तिहारउ || या० ॥ १ ॥ ॥