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श्री बीकानेर मण्डन चौवीसटा आदिनाथ गीतम् ४३ चढिसुसाते टुक हे हां, लाखावन सहसावनइ ।म्हा। मेघ मंडप जल ठाम हे हां, देखोसु व शुभ भावनइ ।६म्हा० बूझवियउ रहनेमि हे हा, तेह गफा राजुल तणी म्हा।। करिस सफल जमार हे हां, बोलइ 'राजसमुद्र' गणी।७।म्हा०
श्री बीकानेर मण्डन चौवीसटा आदिनाथ गीतम् चालउ हिव चउवीसटइ, मुझ मन एह रुहाड़ि। पोसह व्रत उजवालियइ, करि जिणहर परवाडि ॥ परवाडि करिसु चतुर चउविह, संघ साथइ माल्हतो। मन मेलि भेली नव सहेली, गीत अभिनव गावती।। जिण भवण सरगिरि सामि सरतरु सेवतां कसमल कटई। युगवर जिसिंघसूरि साथइ चालउ हिव चउवीसटइ ॥१॥ तीन निसीही साचवी जिणवर भुवण दुवारि । देई तीन प्रदक्षिणा आगम वयण विचारि ॥ सुविचारि तीन प्रणाम त्रिकरण सुद्ध भूमि पमज्जणा । तिम त्रिदिश निरखण विरति परिहरि चउरासी आसातना निज नयण निरखउ नाभि नंदण अवर पडिमा नव नवी। संभारि दश त्रिक पांच अभिगम यथा जोग साचवी ॥२॥ दक्षिण कर जिनवर तराइ नर वाम करि नारि । देव जुहारण अवसरइ एह अछइ अधिकार ॥ भधिकार बारह सुपरि पण प्रणिपात दंडक पिण कही। श्री संघ सुविहित सुगुरु साथइ देव वंद्या गहगही। मन रली हुति फली ते मुझ सहू 'राजसमुद्र' भणइ ।