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त तेरे आनन्द को खोज, लेकिन दूसरे जीवो का आनन्द छीनने का तुझे अधिकार नही है । दूसरो की प्रसन्नता छीनकर तू प्रसन्न वनने की चेष्टा करेगा, तो एक दिन तेरी प्रसन्नता भी कोई टीन लेगा। करना तो यह है कि तू दूसरे जीवो को आनन्द से भर दे। दूसरो को प्रसन्नता से नव-पल्लवित कर दे, तू स्वय स्नेह-पल्लवित हो जायगा । वू निर्मल स्नेह का उपासक वन ।
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