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________________ ॥ सत्तमो भवो ॥ अस्थि दहेव जम्बद्दोवे दौवे भारहे वासे सेसफणाभोयमनिषा पायारेण हिमगिरिमिहरमरिमेहिं भवणेहिं बहुदयनन्दणवणेहिं उववणेहिं विणिज्जियमाणममरेहिं मोहिं चम्पा नाम नयरो। जौए अहिटाणंर विय रूवम्म बौयं विय सुन्दरयाए जोणी विय विणयम्स चेट्टियं वियर मयर केउणो । मंमारंमि वि रमणीयबुद्धिजणी इत्थियायणो। जौए य अपिसुणो अमकरौ कयन्न दको सहाभिगमणौत्रो' पुरिमवग्गो। तोए य दरियारिमद्दणो अमरमणो नाम नरवई होत्था । जो माणविकमधणो पमाहियादिमिवहुभएण । ।, ईमानडिया न निक्षमेव लछो अवऊढो ॥ तम्म मयलन्त उरपहाणा जयसन्दरो नाम भारिया। 'म दमौए मह विमयसहमणुहवन्तो चिट्ठद । दो य मो धारणकप्पवामी देवो अहाउयं पालिऊण तो चुत्रो ममाणो जयसन्दरौए गर्भमि उववत्रो ति । १५ 1 \ uld मा जिया। . om. all tdown परिजवयो। ३ ॥ पिय। ४ ('E all वर तस सह रमौर। 4 (I: शाहवासातो बोर वाली; Bावित नि ।
SR No.010741
Book TitleSamraicca Kaha Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi
PublisherAsiatic Society
Publication Year1926
Total Pages938
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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