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श्री बाहुबली स्वामी पूजन भौतिक सुख की चकाचौंध में जीवन बीत रहा है । भावमरण प्रति समय हो रहा जीवन रीत रहा है । ।
श्री बाहुबली स्वामी पूजन जयति बाहुबलि स्वामी जय जय, करूँ वन्दना बारम्बार । निज स्वरूप का आश्रय लेकर आप हुये भवसागर पार ।। हे त्रैलोक्यनाथ, त्रिभुवन में छाई महिमा अपरम्पार । सिद्धस्वपद की प्राप्ति हो गई हआ जगत मे जय जयकार ।। पूजन करने में आया है अष्ट द्रव्य का ले आधार । यही विनय है चारों गति के दुख से मेरा हो उद्धार ।। ॐ ह्री श्री जिन बाहुबलीस्वामिन् अत्र अबतर अवतर सवौषट्, ॐ ह्रीं श्री बाहुबलि जिन अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ ॐ ह्री श्री बाहुबलि जिन अत्र मम् सन्निहितो भव भव वषट् । उज्जवल निर्मल जल प्रभु पद पकज मे आज चढाता हूँ। जन्म मरण का नाश करु आनन्दकन्द गुण गाता हूँ। श्री बाहुबलिस्वामी प्रभु चरणो मे शीश झकाता हूँ। अविनश्वर शिव सुख पाने को नाथ शरण मे आता हूँ ।।१।। ॐ ह्री श्री जिनबाहुबलिस्वामिन जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलनि । शीतल मलय सुगन्धित पावन चन्दन भेट चढाता हूँ। भव आताप नाश हो मेरा ध्यान आपका ध्याता हूँ ॥श्री बाहु ।२।। ॐ ह्री श्री जिनबाहुबलीस्वामिने ससारताप विनाशनाय चन्दन नि । उत्तम शुभ्र अखडित तन्दुल हर्षित चरण चढाता हूँ। अक्षयपद की सहजप्राप्ति हो यही भावना भाता हूँ ॥श्री बाहु ॥३॥ ॐ ह्री श्री जिनबाहुबलीस्वामिने अक्षयपद प्राप्तये अक्षत नि । काम शत्रु को कारण अपना शील स्वभाव न पाता हूँ। काम भाव का नाश करूँ मैं सुन्दर पुष्पचढाता हूँ ॥श्री बाहु ॥४॥ ॐ ही श्री जिनबाहुबलीस्वामिने कामबाण विध्वंसनाय पुष्प नि । तष्णा की भीषण ज्वाला से प्रति पल जलता जाता हैं। क्षधारोग से रहित बनें मैं शुभ नैवेद्य चढाता हूँ ॥श्री बाहु, १॥५॥ ॐ ह्री श्री जिनबाहुबलीस्वामिने क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि. ।