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जैन पूजओजलि जिनके मन में अभिलाषा है होती उनको सिद्धि नही ।
अभिलाषा वाले को होती शुद्ध भाव की बुद्धि नही ।। ऐसा दीपक न कही जग मे जो अन्तर के तम को हर ले। शुद्धातम का जो अनुभव ले वह अन्तर आलोकित कर ले वासु ॥६॥ ॐ ही श्री पच बालयति जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । जड रूप धूप मे शक्ति नही जो कर्म शक्ति का हरण करे । शुद्धातम का जो अनुभव ले वह निज स्वरूप का वरण करे वास ।।७।। ॐ ह्री श्री पच बालयति जिनेन्द्राय अष्ट कर्म दहनाय धूप नि । तरु फल मे ऐसी शक्ति नहीं जो अन्तर पूर्ण शान्ति छाये । शुद्धातम का जो अनुभव ले वह महा मोक्ष फल को पाये ।। वासु ।।८।। ॐ ह्री श्री पच बालर्यान जिनेन्द्राय मोक्ष फल प्राप्ताय फल नि । यह अर्घ्य न ऐमा शक्तिवान् जो सिद्ध लोक तक पहुँचाये । शुद्धातम का जो अनुभव ले वह निज अनर्घ पद को पाये ।। वासु ।।९।। ॐ ह्री श्री पच बालयति जिनेन्द्राय अनर्घ पद प्राप्तये अयं नि ।
अर्घावलि-श्री वासुपूज्य स्वामी चम्पापुर राजा वसुपूज्य मुमाता विजया के नन्दन । पन्द्रह मास रतन बरसाये सुरपति ने माँ के ऑगन ।।१।। दिक्कुमारियो ने सेवा कर मां का किया मनोरजन । सोलह स्वप्न लखे माता ने निद्रा मे सोते इक दिन ।।२।। जन्म लिया तुमने कुमार वय मे ही की दीक्षा धारण । चार घातिया कर्म नाश कर केवलज्ञान लिया पावन ।।३।। भादव शुक्ला चतुर्दशी को चम्पापुर से मुक्त हुए । परम पूज्य प्रभु हर अघातिया, मुक्ति रमा से युक्त हुए ।।४।। महिष चिह्न चरणो मे शोभित वासुपूज्य को करूं नमन । शुद्ध आत्मा की प्रतीति कर मै भी पाऊँ मुक्ति सदन ।।५।। ॐ ह्री श्री वासुपूज्य जिनेन्द्राय गर्भजन्मतपज्ञानमोक्ष कल्याण प्राप्ताय अयं नि ।