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जैन पूजाँजलि पंच महाव्रत पच समिति त्रय गुप्ति सहित विचरण करते ।
अटाईम मूल गुण पूरे निरतिचार धारण करते ।। भाव वन्दना द्रव्य वन्दना दोनो से कर लें सत्कार ।। श्री बाहुबलि को मै बन्दु पर भावो का करूँ विनाश । अथक अडिग तप करूं निरतर ऐसा दो प्रभु ज्ञान प्रकाश ।। भव नन भोगो से विरक्त हो चलूँ आपके पथ पर नाथ । मैं अनाथ भी एक दिवस बन जाऊँगा तुव कृपा सनाथ ।। दृष्टि बदल जाते ही दिशा बदल जाती है सहज स्वयम् । हो जाता पुरुषार्थ मफल मिट जाता है मिथ्या भ्रमतम ।। जब तक दृष्टि नहीं बदलेगी तब तक ही भव दुख होगा । दृष्टि बदल जाएगी तो फिर अन्तर मे शिव मुख होगा ।। अब तक नो पर्याय दृष्टि रह यह समार बढाया है । द्रव्य दृष्टि से सदा दूर यह बध मार्ग अपनाया है ।। अब तो द्रव्य दृष्टि बन हरलें यह अनादि का मिथ्यातम । निज स्वभाव साधन से पाऊँअविचल मिद्ध स्वपद क्रमक्रम ।। नाथ आपको भव्य मूर्ति के दर्शन से होकर पावन । दो आशीर्वाद हे स्वामी पाऊँ निज स्वभाव साधन ।। जय तप व्रत सयम का वैभव मुझे प्राप्त हो जाए देव । सम्यक दर्शन ज्ञान चरिनमय पाऊँ मुक्ति मार्ग स्वयमेव ।। निज चेतन्य राज पद पाऊँ ऐसी कृपा कोर करदो। सम्यक दर्शन प्रगटाऊँ में ऐसी भव्य भोर कर दो ।। निश्चय सयम के प्रभाव से अप्ट कर्म अवसान करूं। शक्ल ध्यान का सबल पाकर महा मोक्ष निर्वाण वरूँ ।। ॐ ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबली जिनेन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अयं नि
ऋषभ भरत श्री बाहुबलि चरण कमल उर धार । मनवच तन जो पूजते हो जाते भव पार ।।
इत्याशीर्वाद जाग्य मत्र-30 ह्री श्री आदिनाथ भरत बाहुबली जिनेन्द्राय नमः |