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जैन पूजाँजलि भेदज्ञान के बिना न मिलता मिथ्या भ्रम का अत रे । घेदज्ञान में सिद्ध हुए है जीव अनतानत रे ।।
श्री गर्भकल्याणकअर्घ श्री जिन गर्भ कल्याण की महिमा अपरम्पार ।
रत्नो को बोछार हो घर घर मगलचार ।। गर्भ पूर्व छह मास जन्म तक नित नूतन मगल होते । नव बारह योजन नगरी रच इन्द्र महा हर्षित होते ।। गर्भ दिवस जिन माता को दिखते है सोलह स्वप्न महान । बैल, सिह, माला, लक्ष्मी, गज, रवि, शशि, सिहासन, छविमान ।। मीन युगल, दोकलश, सरोवर, सुरविमान, नागेन्द्र विमान । रत्न राशि, निधूमअग्नि मागर लहराता अतुल महान ।। स्वप्न फलो को सुनकर हर्षित, होता है अनुपम आनन्द । धन्य गर्भ कल्याण टेवियाँ सेवा करती है सानन्द ।।१।। ॐ ह्री श्री तीधकरगर्भ कल्याणके यो अर्घ्य नि स्वाहा ।
श्री जन्म कल्याणकअर्घ श्री जिन जन्म कल्याण की महिमा अपरम्पार।
तीनो लोको मे हुआ प्रभु का जय जयकार।। जन्म समय तीनो लोको मे होता है आनन्द अपार । सभी जीव अन्तमुहूर्त को पाने अनि माना मुखकार ।। इन्द्रशची ऐगवत पर चढ धूम मचाने आते है । जिन प्रभु का अभिषेक मेम पर्वत के शिखर रचाते है ।। क्षीरोदधि से एक सहरत्र अरु अष्ट कलश सुर भरते हैं । म्वर्ण कलश शुभ इन्द्रभाव मे प्रभ मस्तक पर करते है ।। मात पिता को सोप इन्द्र करता है नाटक नृत्य महान । परम जन्म कल्याण महोत्सव पर होता है जय जयगान ॐ ही श्री तीर्थंकरजन्मकल्याणकभ्यो अयं नि ।
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