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जैन पूजांजलि सह अस्तित्व समन्वय होगा, संयममय अनुशासन से । सत्य अहिंसा अपरिग्रह अस्तेय शील के शासन से ।। श्री दशलक्षण धर्म की महिमा अगम अपार । जो भी इसको धारते होते भव पार।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमत्र- ॐ ही श्री उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव शौच सत्य सयम तप, त्याग,
आकिचन्य, ब्रह्मचर्य धर्मागाय नम ।
श्री रत्नत्रयधर्म पूजन जय जय सम्यक दर्शन पावन मिथ्या प्रम नाशक श्रद्धान । जय जय सम्यक ज्ञान तिमिर हर जय जय वीतराग विज्ञान ।। जय जय सम्यक चारित निर्मल मोह क्षोभ हर महिमावान । अनुपम रत्नत्रय धारण कर मोक्ष मार्ग पर करूँप्रयाण ॥ ॐ ह्री श्री सम्यकत्लत्रय धर्म अत्र अवतर अवतर सौषट, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । सम्यक सरिता सलिल जल खरा मिध्याभ्रम प्रभु दूर हटाव । जन्म मरण का क्षय कर डालूँ साम्य भाव रस मुझे पिलाव ॥ दर्शन ज्ञान चरित्र साधना से पाऊँ निज शुद्ध स्वभाव । रत्नत्रय की पूजन करके राग द्वेष का करूँ अभाव ॥१॥ ॐ ह्री श्री सम्यकरत्नत्रय धर्माय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जल नि शुभ भावो का चदन घिस-घिस निज से किया सदा अलगाव । भव ज्वाला शीतल हो जाये ऐसी आत्म प्रतीत जगाव ।।दर्शन ॥२॥ ॐ ही श्री सम्यकरत्नत्रय धर्माय ससारताप विनाशनाय चंदन नि । भव समुद्र की भवरो मे फ्स टूटी अब तक मेरी नाव । पुण्योदय से तुमसा नाविक पाया मुझको पार लगाव ।।दर्शन ॥३॥ ॐ ही श्री सम्यकरत्नत्रय धर्माप अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि । काम क्रोध मद मोह लोभ से मोहित हो करता पर भाव । दृष्टि बदलजाये तो सृष्टि बदलजाये यह सुमतिजगावदर्शन ।।४।। ॐ ही श्री सम्यक्ररत्नत्रयधर्माय कामबाण विष्वसनाय पुष्प नि ।