________________
--
जैन पूजाँजलि दर्शनीय श्रवणीय आत्मा, बदनीय मननीय महान । शान्ति सिन्धु सुख सागर अनुपम, नव तत्वों में श्रेष्ठ प्रधान ।।
सोलह कारण भावना हरे जगत दुख द्वन्द । तीर्थकर पद प्राप्त कर करो सदा आनन्द ।।
इत्याशीर्वाद जाप्यमंत्र - ॐ ही श्री दर्शन विशुद्धयादि षोडशकारण भावनाम्यो नम
श्री दशलक्षणधर्म पूजन उत्तम क्षमा आत्मा का गुण उत्तम मार्दव विनय स्वरूप। उत्तम आर्जव माया नाशक उत्तम शौच लोभहर भूप।। उत्तम सत्य स्वभाव ज्ञानमय उत्तम सयम सवर रूप। उत्तम तप निर्जरा कर्म की उत्तम त्याग स्वरूप अनूप।। उत्तम आकिं चन विरागमय उत्तम ब्रह्मचर्य चिद्वप। धन्य धन्य दशधर्म परम पद दाता सुखमय मोक्ष स्वरूप।। ॐ ही उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य शौच, सयम, तप त्याग, आकिचन ब्रम्हचर्य दशलक्षण धर्म अत्र अवतर अवतर सवौषट्, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ अत्र मम सनिहितो भव भव वषट । जल स्वभाव शीतल निर्मल पीकर भी प्यास न बुझ पाई। जन्म मरण का चक्र मिटाने आज धर्म की सुधि आई ।। उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव शौच सत्य सयम तप त्याग। आकिंचन ब्रह्मचर्य धर्म के दशलक्षण से हो अनुराग।। ॐ ही श्री उत्तमक्षमादि दशधर्मागाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि दाह निक्दन चन्दन पाकर भी तो दाह न मिट पाई । राग आग की ज्वाल बुझाने आज धर्म की सुधि आई ।। उत्तम ॥२॥ ॐ ही श्री उत्तमक्षमादिदशधर्मागाय ससारतापविनाशनाय चदन नि । शुभ्र अखण्डित तन्दुल पाकर भी निज रुचि न सुहा पाई। अजर अमर अक्षय पद पाने आज धर्म को सुधि आई ।। उत्तम. ॥३॥ ॐ ही श्री उत्तमक्षमादि दशधागाय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि ।