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श्रीपंचमेक पूजन परम सत्व का सार समझा पति-गति में करता नर्तन ।
शुष्क शान की चादर ओढ़े करता विषयों में बर्तन ।। साढ़े पचपन सहस्त्र योजन ऊंचा है सौमनस सुवन । अट्ठाईस सहस्त्र योजन की उचाई पर पाडूक वनाचारों.।।२।। ॐही श्री पातकीखण्डद्वीप पूर्वदिसा विजयमेरु सम्बन्धी बोडस जिन चैत्यालयस्थ बिनविम्येभ्यो अश्य नि. स्वाहा । खण्ड धातकी पश्चिम दिशि मे अचल मेरु पर्वत सुन्दर । विजय मेरु सम इस पर भी हैं सोलह चैत्यालय मन हर ।। प्रातिहार्य आठों वसुमगल द्रव्यों से जिन गृह शोभित । देव इन्द्र विद्याधर चक्री दर्शन कर होते हर्षित चारों ॥३॥ ॐ ही श्री धातकीखण्डद्वीप पश्चिमदिशा अचलमेरु सम्बन्धि षोडश जिनचैत्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यो अयं नि स्वाहा । पुष्करार्थ की पूर्व दिशा में मंदिर मेरु महासुखमय । विजय मेरु सम इसकी रचना सोलह चैत्यालय जय जय।। चन्द्र सूर्य सम कान्ति सहित हैं रत्नमयी प्रतिमा से युक्त । दस प्रकार के कल्पवृक्ष की मालाओ से हैं संयुक्त चारो।।४।। ॐ हीं श्री पुष्करार्धद्वीप पूर्वदिशा मन्दिरमेरुन्धि षोडश जिन चैत्यालयस्थ जिनबिम्बेभ्यो अर्घ्य नि स्वाहा ।। पुष्करार्थ की पश्चिम दिशि मे विद्युन्माली मेरु महान । विजय मेरु सम ही रचना है सोलह चैत्यालय छविमान । सुर विद्याधर असुर सदा ही पूजन करने आते है । चारण ऋद्धि धारिमुनि भी दर्शन को आतेजाते हैं ।।चारो ।।५।। ॐ ही श्री पुष्करार्धदीप पश्चिमदिशा विद्युन्मालीमेरु सम्बन्धि जिन चैत्यालयस्थ जिन बिम्बेभ्यो अयं नि स्वाहा ।
जयमाला एक लाख योजन का जम्बूद्वीप लोक के मध्य प्रधान । चार लाख योजन का सुन्दर द्वीप धातकी खण्ड महान ॥१॥ सोलह लाख सुयोजन का है पुष्कर द्वीप अपूर्व ललाम । इनमे पंचमेरु हैं अनुपम परम सुहावन हैं शुभ नाम ॥२॥