________________
श्री नन्दीश्वर द्वीप [अष्टान्हिका ] पूजन बहुआरंभ परिग्रह भावों से है घोर नरक गतिबंध । ।
मायामयी अशुभ भावों से होता गति त्रियंच का बध ।। ब्रह्मचर्य का फल पाने को रत्नत्रय पथ पर आऊँ। निज स्वरूप मे चर्या करके महामोक्ष फल को पाऊँ नदी ॥८॥ ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वर द्वीपे द्विपमजिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो महामोक्षफल प्राप्ताया फल नि । सवर और निर्जरा द्वारा कर्म रहित मैं हो जाऊँ। आश्रव बंध नाश कर स्वामी मैं अनर्घ पदवी पाऊँ ।। नदी ॥९॥ ॐ ही श्री नन्दीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशासु द्वि पचाश जिनालयस्थ जिनप्रतिमा यो अनर्घपद प्राप्तये अयं नि ।
जयमाला पध्य लोक मे एक लाख योजन का जम्बूद्वीप प्रथम । द्वीप धातकी खण्ड दूसरा तीजा पुष्करवर अनुपम ॥१॥ चौथा द्वीप वारुणीवर है द्वीप क्षीरवर है पचम । षष्टम् घृतवर द्वीप मनोहर द्वीप अक्षवर है सप्तम ॥२॥ अष्टम् द्वीप श्री नन्दीश्वर अद्वितीय शोभा धारी । योजन कोटि एक सौ त्रेसठ लख चौरासी विस्तारी ॥३॥ पूरब, पश्चिम, उत्तर दक्षिण दिशि मे है अजनगिरिचार । इनके भव्य शिखर पर जिन चैत्यालय चारो हैं सुखकार ।।४।। चहु दिशि चार चार वापी हैं लाख-लाख योजन जलमय । इनमें सोलह दधिमुख पर्वत जिन पर सोलह चैत्यालय ।।५।। सोलह वापी के दो कोणो पर इक इक रतिकर पर्वत । इन पर हैं बत्तीस जिनालय जिनकी है शोभा शाश्वत ॥६॥ कृष्ण वर्ण अंजनगिरि चौरासी सहस्त्र योजन ऊँचे । श्वेत वर्ण के दधिमुख पर्वत दस सहस्त्र योजन ऊँचे ।।७।। लाल वर्ण के रतिकर पर्वत एक सहस्त्र योजन ऊँचे। सभी डोल सप गोल मनोहर पर्वत हैं सुन्दर ऊँचे ॥४॥