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मायादव वी आर हुए मनमा
श्री पावापुर निर्वाण क्षेत्र पूजन यह व्यवहार हेय है फिर भी स्वत मार्ग में आता है ।
एक मात्र निश्चय ही श्वाश्वत मुक्ति पुरी पहुचाता है ।। फिर जाते हैं सहस्त्राम वन जहाँ हुआ था तप कल्याण । नेमिनाथ के चरणाम्बुज में अर्थ्य चढाते यात्री आन ।।१५।। जिन दीक्षा लेकर प्रभु जी ने यहाँ घोर तप किया पहान । चार घातिया कर्म नष्ट कर पाया प्रभु ने केवलज्ञान ॥१६॥ राजुल ने भी यहीं दीक्षा लेकर किया आत्म कल्याण ।
और अनेको यादव वशी आदि हुए मुनि महा महान ।।१७।। मैं भी प्रभु के पद चिन्हों पर चलकर महामोक्ष पाऊँ।। भेद ज्ञान की ज्योति जलाकर सम्यकदर्शन प्रगटाऊँ।।१८।। सम्यकज्ञान चरित्र शक्ति का पूर्ण विकास करूँ स्वामी । निश्चय रत्नत्रय से मैं सर्वज्ञ बनें अन्तर्यामी ॥१९॥ चार घातिया कर्म नष्ट कर पद अरहत सहज पाऊँ। फिर अघातिया कर्म नाशकर स्वय सिद्ध प्रभु बन जाऊँ ।।२०।। पद अनर्थ्य पाने को स्वामी व्याकुल है यह अन्तर्मन । जल फलादि वस द्रव्य अर्घ्य चरणो मे करता है अर्पण ॥२१॥ नेमिनाथ स्वामी तुम पद पकज की करता हूँ पूजन । वीतराग तीर्थकर तुमको कोटि कोटि मेरा वन्दन ।।२२।। ॐ ही श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो पूर्णाय॑ नि स्वाहा ।
नेमिनाथ निर्वाण भू बन्दै बारम्बार । उर्जयत गिरनार से हो जाऊँ भवपार । ।
इत्याशीर्वाद जाप्यमन्त्र-ॐ ह्रीं श्री गिरनार तीर्थक्षेत्रेभ्यो नम ।
श्री पावापुर निर्वाण क्षेत्र पूजन श्री पावापुर तीर्थक्षेत्र को भक्तिभाव से करूँ प्रणाम । जल मन्दिर मे महावीरस्वामी के चरणकमल अभिराम ।। इसी भूमि से मोक्ष प्राप्त कर परम सिद्धपुरी का धाम । विनयसहित पूजन करता हूँ पाऊँ निजस्वरुप विश्राम ।।