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________________ - श्री विद्यमान बीसतीर्थकर पूजन निश्चय रत्नत्रय के बिन तो कभी न होगा मोश त्रिकाल । केवल शुद्ध भाव से ही तो होगा पूर्ण अबंध निहाल ।। पांच भरत अरु पंच ऐरावत कर्मभूमियों दस गिनकर। एक साथ हो सकते है तीर्थकर एक शतक सत्तर ॥४॥ किन्तु न्यूनतम बीस तीर्थंकर विदेह में होते हैं । सदा शाश्वत विद्यमान सर्वज्ञ जिनेश्वर होते हैं ।।५।। एक मेरु के चार विदेहों मे रहते तीर्थकर चार । बीस विदेहों मे तीर्थकर बीस सदा ही मगलकार ॥६॥ कोटि पूर्व की आयु पूर्ण कर होते पूर्ण सिद्ध भगवान । तभी दूसरे इसी नाम के होते हैं अरहर महान ।।७।। श्री जिनदेव महा मंगलमय वीतराग सर्वज्ञ प्रधान । भक्ति भाव से पूजन करके मैं चाहूँ अपना कल्याण ॥८॥ विरहमान श्री बीस जिनेश्वर भाव सहित गुणगान करूँ। जो विदेह मे विद्यमान हैं उनका जय जय गान करूँ ॥९॥ सीमन्धर को वन्दन करके मै अनादि मिथ्यात्व हरूँ। जुगमन्दर की पूजन करके समकित अगीकार करूँ॥१०॥ श्री बाहु को सुमिरण करके अविरत हर व्रत ग्रहण करूँ। श्री सुबाहु पद अर्चन करके तेरह विधि चारित्र धरूँ ॥११॥ प्रभु सुजात के चरण पूजकर पच प्रमाद अभाव करूँ। देव स्वयप्रभ को प्रणाम कर दुखमय सर्व विभाव हरूँ।।१२।। ऋषभानन की स्तुति करके योग कषाय निवृत्ति करूँ। पूज्य अनन्तवीर्य पद वन्, पथ निर्ग्रन्थ प्रवृत्ति करूँ।।१३।। देव सौरप्रभ चरणाम्बुज दर्शन कर पाँचो बन्ध हरूँ। परम विशालकीर्ति की जय हो निज को पूर्ण अबध करूँ।।१४।। श्री वज्रधर सर्व दोष हर सब संकल्प विकल्प हरूँ। चन्द्रानन के चरण चित्त घर निर्विकल्पता प्राप्त करूँ ॥१५॥ चन्द्रबाहु को नमस्कार कर पाप पुण्य सब नाश करूँ। श्री भुजग पद मस्तक धर कर निज चिद्रूप प्रकाश करूँ ॥१६॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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