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जैन पूजाँजाल जब तक दृष्टि निमितों पर है पर दुख कभी न आएमा ।
उपादान आग्रत होते ही सब सकर रल जाएगा। षट् द्रव्यों से भूख न पिट पाई तो प्रभु च लाया है। आत्म तत्व की भूख मिटाने प्रभुचरणों में आया है। चिन. १५॥ ॐही श्री चंद्रप्रभ जिनेंद्राय सुधारोग विनाशनाय नवे नि । अन्धकार तम हरने वाला दीप प्रभामय लाया हूँ। आत्मदीप की ज्योति जलाने प्रभु चरणों में आया हैं चन्द्र. ६।। *ही श्री चंद्रप्रभा जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । पर परिणति का धुआ उड़ाने धूप सुगन्धित लाया हूँ। अष्ट कर्मअरि पर जय पाने प्रभु चरणों में आया हूँ । चन्द्र ।।७।। ॐ ही श्री चद्रप्रभ जिनेन्द्राय अष्टकर्म विष्वसनाय धूप नि । पर विभाव फल से पीडित होकर नूतन फल लाया हैं। अपना सिद्ध स्वपद पाने को प्रभु चरणों में आया हूँ। चन्द्र ॥८॥ ॐ हीं श्री चद्रप्रभ जिनेन्द्राय महामोक्ष फल प्राप्ताय फल नि स्वाहा । अप्ट द्रव्य का अर्थ मनोरम हर्षित होकर लाया हूँ। चिदानन्द चिन्मय पद पाने प्रभु चरणों में आया हूँ। चिन्द्र ।।९।। ॐ ह्री श्री चद्रप्रभ जिनेन्द्राय अनर्थपद प्राप्तये अयं नि ।
श्रीपंचकल्याणक के कृष्ण पचमी मात उर वैजयत तज कर आए। सोलह स्वप्न हुए माता को रत्न सुरों ने बरसाये ।। मात लक्ष्मणा स्वप्न फलो को जान हृदय में हर्षाये । हा गर्भ कल्याण महोत्सव घर घर में आनन्द छाये ॥ ॐ ही श्री चैत्रकृष्णपंचम्यो गर्भमगलप्राप्ताय श्री चंद्रप्रभजिनेन्द्राय अन्य नि । पौष कृष्ण एकादशम् को चन्द्रनाथ का जन्म हुआ । मेरु सुदर्शन पर मंगल उत्सव कर सुरपति धन्य हुआ ।। चन्द्रपुरी में बजी बधाई तीन लोक में सुख छाया। महासेन राजा के गृह में देवों ने मंगल गाया ॥२॥ ॐ ह्रीं श्री पौषकृष्णएकादश्या जन्ममंगलमाप्ताय श्री चन्द्रप्रमजिनेन्द्राय अयं नि.।