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जैन पूजांजलि द्रव्य पर अणुमात्र भी तेरा नहीं इसलिए पर द्रव्य से मस राग कर । द्रव्य तेरा शुद्ध चेतन आत्म है इसलिए निज आत्म से अनुराम राग कर ।। ॐ ही श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं नि. ।। पुष्पों की सरस सुवास मन को भायी है। शुद्धातप की महिमा नहीं कर पाई है। हे सुमति. ॥४॥ ॐहीं श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं नि । नित खाकर भी नैवेद्य दृप्ति न पाई है। शुद्धातम की महिमा नहीं कर पाई है । हे सुमति ॥५॥ ॐ ही श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय सुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि । रत्नो की दीपक ज्योति तो दिखलाई है। शुद्धातम की महिमा नहीं कर पाई है । हे सुमति ॥६॥ ॐ ही श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । पन महा सुगन्धित धूप सुरभि सुहाई है। शुद्धातम की महिमा नहीं कर पाई है । हे सुमति ॥७॥ ॐ ह्री श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय अष्टकर्म विध्वंसनाय धूप नि । अनुकूल पुण्य फल राग की रुचि भाई है। शुद्धातम की महिमा नहीं कर पाई है । हे सुमति. ।।८।। ॐ ह्री श्री सुमतिनाथ जिनेद्राय महामोक्ष फल प्राप्ताये फल नि ।। जग के द्रव्यो को चाह, नित ही भायी है। शुद्धातम की महिमा नहीं कर पाई है । ।हे सुपति ॥९॥ ॐ ह्री श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय अनर्थ पद प्राप्ताय अयं नि ।
श्री पंचकल्याणक स्वर्ग जयन्त विमान त्यागकर मात पगला उर आए। नगर अयोध्या धन्य हो गया रत्न सुरों ने बरसाए ।। सोलह स्वप्न लखे माता ने श्रावण शुक्ल दूज भाए । जय जय सुमतिनाथ तीर्थकर इन्द्रादिक सुर मुस्काए ॥९॥ ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ल द्वितीया गर्भ कल्याण प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय अयं नि।