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जैन पूजान्जलि तन पर्वत पर गिरे न जब तक वन अरे यमराज का ।
तब तक कर्म नाश करने को ले शरणा जिनराज का ।। इसकी अनुपम महिमा का शब्दों से कैसे हो वर्णन । जो अनुभव करते हैं वे ही पा लेते हैं मुक्ति गगन ॥१२॥
अर्घ्य जल गधाक्षत पुष्प सुचरु ले दीप धूप फल अर्घ्य धरूँ। जिन गृह मे जिनराज पच कल्याणक पाँचोंनमन करूँ॥१॥ ॐ ह्री श्री जिनेन्द्र पच कल्याणकेयो अब निर्वपामीति स्वाहा । जल गधाक्षत पुष्प सुचरु ले दीप धूप फल अर्घ्य धरूँ। जिन गृह मे पॉचों परमेष्ठी के चरणों मे नमन करूँ।।२।। ॐ ह्रीं श्री अरहतादि पच परमेष्ठिभ्यो अर्य निर्वपामीति स्वाहा । जल गधाक्षत पुष्प सुचरु ले दीप धूप फल अर्ध्य धरूँ। जिन गृह मे जिनप्रतिमा सम्मुख सहस्त्रनाम को नमन करूँ।।३।। ॐ ही श्री भगवज्जिनसहस्त्रनामेभ्यो अयं निर्वपामीति स्वाहा ।
स्वस्ति मंगल मगलमय भगवान वीर प्रभु मगलमय गौतम गणधर । मगलमय श्री कुन्दकुन्द मुनि मगल जैन धर्म सुखकर ॥१॥ मगलमय श्री ऋषभदेवप्रभु मगलमय श्री अजित जिनेश ।। मगलमय श्री सम्भव जिनवर, मगल अभिनदन परमेश ।।२।। मगलमय श्री सुमति जिनोत्तम मगल पद्मनाथ सर्वेश ।। मगलमय सुपार्श्व जिन स्वामी मगल चन्द्राप्रभु चन्द्रेश।।३।। मगलमय श्री पुष्पदत प्रभु, मगल शीतलनाथ सुरेश । मगलमय श्रेयासनाथ जिन मगल वासुपूज्य पूज्येश।।४।। मगलमय श्री विमलनाथ विभु, मगल अनन्तनाथ महेश । मगलमय श्री धर्मनाथ प्रभु, मगल शातिनाथ चक्रेश।।५।। मगलमय श्री कुन्थुनाथ जिन मगल श्री अरनाथ गुणेश ।। मगलमय श्री मल्लिनाथ प्रभु मगल मुनिसुव्रत सत्येश ॥६॥