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श्री सम्भवनाथ जिन पूजन "अप्पा से परमप्पा" जिनके उर में पाव समाथा ।
पर पदार्थ से निमिष मात्र में उसने राग हटाया ।। अवेयक से आये मात सुसेना का उर धन्य हुआ । फागुन शुक्ल अष्टमी को संभव प्रभु का शुभ स्वप्न हुआ ।।१।। *ही फागुन शुक्ल अष्टम्यो गर्भ कल्याण प्रापतये श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय अयं नि. कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा के दिन श्रावस्ती मे जन्म हुआ । नप जितारि मन में हर्षाये तिहुँ जग में आनन्द हुआ । मेंरु सुदर्शन पांडुकवन में संभव प्रभु का नव्हन हुआ । एक सहस्त्र अष्ट कलशों में क्षीरोदधि आगमन हुआ।।२।। ॐ ही कार्तिक शुक्ल पूर्णिमाया जन्मकल्याण प्राप्तये श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय आय नि। मगसिर शुक्ल पूर्णिमा को ही जब उर मे वैराग्य हुआ । राज्य सम्पदा को ठुकराया वस्त्राभूषण त्याग हुआ।। सभव प्रभु को लौकान्तिक देवों का शत शत नमन हुआ । गये सहेतुक वन पे हर्षित पंच महावत ग्रहण हुआ ॥३॥ ॐ हीं मगसिरशुक्ल पूर्णिमायो सपोमंगलप्राप्ताय श्री संभवनाथजिनेन्द्राय अयं नि । कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तक प्रभु चौदह वर्ष रहे छदमस्थ । केवलज्ञान लक्ष्मी पाई चार धानिया करके ध्वस्त।। समवशरण मे जग जीवों के अन्धकार का नाश हुआ । संभव जिनकी दिव्य प्रभा से सम्यज्ञान प्रकाश हुआ ।।४।। ॐहीं कार्तिक कृष्ण चतुथदिने ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्री संभवनाथ जिनेन्द्राय अन्य नि। अवलदत्त शुभ कूट शिखरजी अन्तिमशुक्ल स्वघ्यान किया । • संभवजिन ने हो अयोगकेवली परम निर्वाण लिया ।
शेष अपाति कर्म सब क्षय कर पदसिद्धत्व महान लिया । जय जय संभवनाथ सरों ने मंगल मोक्षकल्याण किया ।
रामलक्ष्टीदिने मोक्षकल्याणप्राप्ताय संभवनायजिनेंद्राय अन्य नि.