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जैन पूजान्जलि कृत्रिम अकृत्रिम जिन भवन भाव सहित उर धार । मन-वच तन जो पूजते वे होते भव पार ।।
करलो जिनवर की पूजन करलो जिनवर की पूजन, आई पावन घड़ी । आई पावन घडी मन भावन घड़ी ॥१॥ दुर्लभ यह मानव तन पाकर, करलो जिन गुणगान ।। गुण अनन्त सिद्धों का सुमिरण, करके बनो महान।। करलो ॥२॥ ज्ञानावरण, दर्शनावरणी, मोहनीय अतराय । आयु नाम अरु गोत्र वेदनीय, आठों कर्म नशाय ।।करलो ॥३॥ धन्य धन्य सिद्धो की महिमा, नाश किया ससार । निजस्वभाव से शिवपद पाया, अनुपम अगम अपार।।करलो ॥४॥ जड़ से भिन्न सदा तुम चेतन करो भेद विज्ञान । सम्यक दर्शन अगीकृत कर निज को लो पहचान करलो ॥५॥ रत्नत्रय की तरणी चढकर चलो मोक्ष के द्वार । शुद्धातम का ध्यान लगाओ हो जाओ भवपार ||करलो ॥६॥
पूजा पाठिका ॐ जय जय जय नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु अरिहतो को नमस्कार है, सिद्धो को सादर वदन । आचार्यों को नमस्कार है, उपाध्याय को है वन्दन ।।१।। और लोक के सर्वसाधुओ को है विनय सहित वन्दन। पच परम परमेष्ठी प्रभु को बार बार मेरा वन्दन ॥२।। ॐ ह्री श्री अनादि मूलमत्रेभ्यो नम पुष्पाजलि क्षिपामि ।। मगल चार, चार हैं उत्तम चार शरण मे जाऊँ मै । मन वच काय नियोग पूर्वक, शुद्ध भावना भाऊँ मै ॥३।। श्री अरिहत देव मगल है, श्री सिद्ध प्रभु हैं मगल। श्री साधु मुनि मगलहैं, है केवलि कथित धर्म मंगल।। श्री अरिहत लोक मे उत्तम, सिद्ध लोक में हैं उत्तम । साधु लोक मे उत्तम हैं, है केवलि कथित धर्म उत्तम ।।४।।